Wednesday, December 28, 2011

‘मीरो-ग़ालिब’ की शाइरी रखना........................चाँद शेरी

अपने जीवन में सादगी रखना
आदमियत की शान भी रखना

डस न ले आस्तीं के सांप कहीं
इन से महफ़ूज़ ज़िंदगी रखना

हों खुले दिल तो कुछ नहीं मुश्किल
दुश्मनों से भी दोस्ती रखना

मुस्तक़िल रखना मंज़िले-मक़सूद
अपनी मंज़िल न आरज़ी रखना

ए सुख़नवर नए ख्यालों की
अपने शेरों में ताज़गी रखना

अपनी नज़रों के सामने ‘शेरी’
‘मीरो-ग़ालिब’ की शाइरी रखना

---------चाँद शेरी

1 comment:

  1. बहुत अच्छी ग़ज़ल है.
    आपकी पसंद और साहित्यिक सोंच की दाद देनी पड़ेगी.रचनाकार को इस बेहतरीन ग़ज़ल की बधाई.

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