Monday, May 21, 2012

तआक़ुब में गई सारी जवानी.......अमजद इस्लाम 'अमजद'

मैं भींगती आँखों से उसे कैसे हटाऊँ
मुश्किल है बहुत अब्र में दीवार उठानी
अब्र = घटा,

निकला था तुझे ढूंढने इक हिज्र का तारा
फिर उसके तआक़ुब में गई सारी जवानी
 हिज़्र = जुदाई, तआक़ुब = पीछा,

कहने को नई बात कोई हो तो सुनाएं
सौ बार ज़माने ने सुनी है ये कहानी

किस तरह मुझे होता गुमां तर्के-वफ़ा का
आवाज़ में ठहराव था, लहजे में रवानी
गुमां = अंदाजा

अब मैं उसे कातिल कहूं 'अमजद' कि मसीहा
क्या जख्मे-हुनर छोड़ गया अपनी निशानी


---अमजद इस्लाम  'अमजद'

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