Tuesday, December 11, 2012

कोमल सर्दी की गुलाबी ठिठुरन................फाल्गुनी



कोमल सर्दी की गुलाबी ठिठुरन में
नर्म शॉल के गर्म एहसास को लपेटे
तुम्हारी नीली छुअन
याद आती है,
 



याद
जो बर्फीली हवा के
तेज झोंकों के साथ
तुम्हें मेरे पास लाती है,
तुम नहीं हो सकते मेरे
यह कड़वा आभास
बार-बार भला जाती है,

जनवरी की शबाब पर चढ़ी ठंड
कितना कुछ लाती है
बस, एक तुम्हारे सिवा,
तुम जो बस दर्द ही दर्द हो
कभी ना बन सके दवा,
नहीं जान सके
तुम्हारे लिए
मैंने कितना कुछ सहा,
फिर भी कुछ नहीं कहा... 


---स्मृति जोशी  'फाल्गुनी'

8 comments:

  1. sundar pr siharan bhari prastuti,pahad par vaise hi thithran bhari thand aur upar si
    जो बर्फीली हवा के
    तेज झोंके

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  2. बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना .बहुत बधाई आपको

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  3. तुम्हारे लिए
    मैंने कितना कुछ सहा,
    फिर भी कुछ नहीं कहा...
    बहुत ही बढिया ।

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  4. बस, एक तुम्हारे सिवा,
    तुम जो बस दर्द ही दर्द हो
    कभी ना बन सके दवा,
    नहीं जान सके
    तुम्हारे लिए
    मैंने कितना कुछ सहा,
    फिर भी कुछ नहीं कहा...


    बहुत सुंदर .....

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    1. शुक्रिया दीदी
      आपने मेरी पसंद को सराहा

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  5. तुम नहीं हो सकते मेरे
    यह कड़वा आभास
    बार-बार भुला जाती है,
    kadvi sachchai ...sundar rachna..

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