Monday, March 4, 2013

मिलता है मगर बिछड़ने की शर्त पर.......वीर






मिलता है मगर बिछड़ने की शर्त पर,
जिंदा तो है मगर मरने की शर्त पर |



जिंन्दगी तेरी अदा है या बेबसी मेरी,
सला मिलता है मगर डरने की शर्त पर |
जिंदा तो है मगर मरने की शर्त पर…

पल दो पल से ज़्यादा कहीं भी रुकता नहीं,
वक्त अच्छा आता है गुजरने की शर्त पर |
जिंदा तो है मगर मरने की शर्त पर…

ये रिहाई भी क्या कोई रिहाई है सितमगर,
परिंदा आज़ाद किया पंख कतरने की शर्त पर |
जिंदा तो है मगर मरने की शर्त पर….

फिर किस बात का भरोसा करिये ‘वीर’,
वो वादा भी करते हैं मुकरने की शर्त पर |


-वीर
http://veeransh.com/ghazal/shart

8 comments:

  1. पल दो पल से ज़्यादा कहीं भी रुकता नहीं,
    वक्त अच्छा आता है गुजरने की शर्त पर

    अधूरे सपने को
    पूरा करने को
    कह कर जाता है ?

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति

    साभार.........

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  3. जिंन्दगी तेरी अदा है या बेबसी मेरी ...
    ---------------------------------
    अच्छे भाव ... चोटिल सपनों का जख्म टटोलती रचना ..

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  4. प्यार शर्तो पर होने लगा है

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  5. शानदार |


    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  6. शुक्रिया यशोदा मेरी कविता को पसंद करने के लिए
    ये नज़्म पढ़ी . बहुत सुन्दर लिखा है .. बधाई स्वीकार करिए
    ज़िन्दगी के कई शेड्स है इसमें. शब्द भावपूर्ण है .

    विजय
    www.poemsofvijay.blogspot.in

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  7. बहुत खूब आपके भावो का एक दम सटीक आकलन करती रचना
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
    पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?

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