Tuesday, December 31, 2013

ये दुनिया अश्क से ग़म नापती है...............प्रखर मालवीय 'कान्हा'


कहीं जीने से मैं डरने लगा तो….?
अज़ल के वक़्त ही घबरा गया तो ?

ये दुनिया अश्क से ग़म नापती है
अगर मैं ज़ब्त करके रह गया तो….?

ख़ुशी से नींद में ही चल बसूंगा
वो गर ख़्वाबों में ही मेरा हुआ तो…

ये ऊंची बिल्डिंगें हैं जिसके दम से
वो ख़ुद फुटपाथ पर सोया मिला तो….?

मैं बरसों से जो अब तक कह न पाया
लबों तक फिर वही आकर रूका तो….?

क़रीने से सजा कमरा है जिसका
वो ख़ुद अंदर से गर बिखरा मिला तो ?

लकीरों से हैं मेरे हाथ ख़ाली
मगर फिर भी जो वो मुझको मिला तो ?

यहां हर शख़्स रो देगा यक़ीनन
ग़ज़ल गर मैं यूं ही कहता रहा तो…..

सफ़र जारी है जिसके दम पे `कान्हा
अगर नाराज़ वो जूगनू हुआ तो?

-प्रखर मालवीय कान्हा
- 08057575552

 http://wp.me/p2hxFs-1AL

3 comments:

  1. नव वर्ष में भी खूब फूले फले ....

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (31-12-13) को "वर्ष 2013 की अन्तिम चर्चा" (चर्चा मंच : अंक 1478) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    2013 को विदायी और 2014 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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