Tuesday, July 29, 2014

नहीं होता है सावन खुशगवार........फाल्गुनी

 




















नहीं दिखता तुम्हारी आँखों में
अब वो शहदीया राज


नहीं खिलता देखकर तुम्हें
मेरे मन का अमलतास,


नहीं गुदगुदाते तुम्हारी
सुरीली आँखों के कचनार


नहीं झरता मुझ पर अब
तुम्हारे नेह का हरसिंगार,


सेमल के कोमल फूलों से
नहीं करती माटी श्रृंगार


बहुत दिनों से उदास खड़ा है
आँगन का चंपा सदाबहार,


रिमझिम-रिमझिम बूँदों से
मन में नहीं उठती सौंधी बयार


रुनझुन-रुनझुन बरखा से

नहीं होता है सावन खुशगवार,

बीते दिन की कच्ची यादें
चुभती है बन कर शूल
मत आना साथी लौटकर
अब गई हूँ तुमको भूल।


-फाल्गुनी

8 comments:

  1. श्रावण मास पर स्मृतिओं की सुन्दर बयार
    बुलाने का खूशूरत बहाना और सुन्दर आमंत्रण

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  2. अमलतास और चंपा की महक बिखेरती पंक्तियाँ। वाह

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति...ईद मुबारक़...

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  4. खुबसूरत अभिव्यक्ति...

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  5. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।
    साया बापू का उठा, *रूप-चन्द ग़मगीन :चर्चा मंच 1690

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  6. बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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  7. बहुत सुंदर--मन को छू गयी.

    बीते दिन की कच्ची यादेंे
    चुभती हैम बन कर शूल
    मत आना---
    अब गयी हूं तुमको भूल----इसके आगे कुछ पंकितियां लिख दीं है--मन के-मनके पर

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