Thursday, September 11, 2014

मां की आँखें नम हो गई.....थानू निषाद "अकेला"

    










आंचल में छुपाते हुए
मां ने धीरे से कहा-
बेटी! डरो नहीं
अब तो मैं तुम्हारे पास
बैठी हूँ.


इतना सुनते ही, सहमी सी थोड़ी
दबी जुबान से बेटी ने कहा-
मां, यहां कैसे-कैसे लोग हैं ?
जो माँ को माँ, बेटी को बेटी
बहन को बहन
कहना भी भूल गए


मानवता को तार-तार कर
इंसान से हैवान बनते
ये कैसे आदमखोर लोग हैं
अब तो एक अकेली,
बाहर निकलने से भी
डर लगता है


इतना सुनते ही,
मां की आँखें नम हो गई.....


-थानू निषाद "अकेला"
टिकरापारा, फिंगेश्वर (छ.ग.)

9 comments:

  1. बहुत ही संवेदनशील रचना

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (13-09-2014) को "सपनों में जी कर क्या होगा " (चर्चा मंच 1735) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. सुन्दर रचना...

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  4. भूले हुए को उसकी तमीज याद दिलाना लक्ष बन गया हो जैसे साहित्य का.... स्त्री का...
    एकता और जागरूकता बेहद जरूरी है

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  5. मर्म को छूती बहुत सुन्दर रचना, आज इंसान में हैवान घुस गया है,वह यह भूल गया है कि उसके स्वयं के भी एक माँ , बहन बेटी भी है , इसलिए यह डर स्वाभाविक है

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