Saturday, September 27, 2014

जो मेहँदी से कट गयी.........सचिन अग्रवाल


मेहनतकशों की सख्त हथेली से कट गयी
दीवार जो कुंए की थी रस्सी से कट गयी 

क्या ज़ायका है खून का अपने को क्या पता
अपनी तो सूखी रोटी से चटनी से कट गयी 

अंदाजा है तुम्हे कि किसी का थी वो नसीब
हाथों की एक लक़ीर जो मेहँदी से कट गयी

तन्हाई,जख्म माज़ी के और कोई धुंधली याद
एक सर्द रात गीली अंगीठी से कट गयी

मर्ज़ी से अपनी मरने का मौका भी कब मिला
और ज़िन्दगी भी औरों की मर्ज़ी से कट गयी

( नए मरासिम में प्रकाशित)

-सचिन अग्रवाल

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर

    ज़िन्दगी भी औरों की मर्ज़ी से कट गयी


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  2. Waaah zabardast abhivyakti....zabardast aashaar....

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