Monday, September 8, 2014

हिलती हैं दीवारें...............डॉ. दीनदयाल दिल्लीवार
















रोज,
हर रोज ही
हिलती हैं
दीवारें
मेरे घर की
मारा जाता है
अनजानें ही
जब कोई-
आदमी
तो कांपता है
नक्शा
हिन्दुस्तान का

डॉ. दीनदयाल दिल्लीवार,
बालोद, जिला दुर्ग, छत्तीसगढ़
.........अवकाश, नवभारत

9 comments:

  1. सुन्दर और गंभीर अभिव्यक्ति

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  2. मारा जाता है,अनजानें ही
    जब कोई-
    आदमी
    तो कांपता है
    नक्शा
    हिन्दुस्तान का( गंभीर अभिव्यक्ति)

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  3. सच में कांपता है नक्षा हिन्दुस्तान का

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  4. अति सुंदर चित्रण मानस के मन में बैठे डर का

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  5. सही और सटीक प्रस्तुति

    स्वागत है मेरी नवीनतम कविता पर रंगरूट
    अच्छा लगे तो ज्वाइन भी करें
    आभार।

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  6. हमारी आन बान शान जुडी है हिंदुस्तान से तो निश्चित ही इसकी शान में बट्टा मतलब अपने घर पर ..
    बहुत सही ..

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  7. मुक्तिबोधमय अभिव्यक्ति

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