Tuesday, July 21, 2015

ज़िक्र जिस दम भी छिड़ा..........गोपाल दास सक्सेना "नीरज"


जब चले जाएंगे लौट के सावन की तरह ,
याद आएंगे प्रथम प्यार के चुम्बन की तरह 

ज़िक्र जिस दम भी छिड़ा उनकी गली में मेरा
जाने शरमाए वो क्यों गांव की दुल्हन की तरह

कोई कंघी न मिली जिससे सुलझ पाती वो 
जिन्दगी उलझी रही ब्रह्म के दर्शन की तरह 

दाग मुझमें है कि तुझमें यह पता तब होगा ,
मौत जब आएगी कपड़े लिए धोबन की तरह 

हर किसी शख्स की किस्मत का यही है किस्सा ,
आए राजा की तरह ,जाए वो निर्धन की तरह

जिसमें इन्सान के दिल की न हो धड़कन की नीरज '
शायरी तो है वह अखबार की कतरन की तरह

- गोपाल दास सक्सेना "नीरज" 
पद्म श्री सम्मान (1991)
पद्म भूषण सम्मान (2007)
.......SUNDAY@ नवभारत

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