Tuesday, September 29, 2015

कोई रंगीन सी उगती हुई कविता.... फाल्गुनी

रख दो 
इन कांपती हथेलियों पर 
कुछ गुलाबी अक्षर 
कुछ भीगी हुई नीली मात्राएं 
बादामी होता जीवन का व्याकरण, 

चाहती हूं कि 
उग ही आए कोई कविता
अंकुरित हो जाए कोई भाव, 
प्रस्फुटित हो जाए कोई विचार 
फूटने लगे ललछौंही कोंपलें ...
मेरी हथेली की ऊर्वरा शक्ति

सिर्फ जानते हो तुम 
और तुम ही दे सकते हो 
कोई रंगीन सी उगती हुई कविता 
इस 'रंगहीन' वक्त में.... 

-स्मृति

Wednesday, September 16, 2015

मैं भी हूँ मुझको कुछ करने की इजाज़त दे दो.....नुरूलअमीन "नूर "


अब मेरे दिल को धडकने की इजाज़त दे दो 
अपने दिलकी तरफ चलने की इजाज़त दे दो

मांगकर देख लिया कुछ नहीं हुआ हासिल 
हमें भी आँखें मसलने की इजाज़त दे दो

तुम्हें लगता है के फैला है अँधेरा हम से 
खुशी खुशी हमें जलने की इजाज़त दे दो

अना की धूप से दिल में बहार आती नहीं 
खुश्क आँखों को बरसने की इजाज़त दे दो

भूल ना जाऊं कहीं मैं तेरे गम का सावन 
अपनी जुल्फों से लिपटने की इजाज़त दे दो

तुम हीं थीं जिसके लिए ताज बनाया उसने 
मैं भी हूँ मुझको कुछ करने की इजाज़त दे दो

अब के मैं तेरे आस्ताने पे सर रख दूंगा 
फिर अपने दर से गुजरने की इजाज़त दे दो

ये सच्चा चेहरा मुझे "नूर" दे गया धोका 
मुझे भी चेहरा बदलने की इजाज़त दे दो

-नुरूलअमीन "नूर "

Saturday, September 12, 2015

उम्मीद-ए-वफा रखता हूँ....... नुरूलअमीन "नूर "















ठोकर लगाकर जा रहे हो 
दिल को पत्थर जान कर 
जान भी लेजा मेरी 
एक छोटा सा एहसान कर

मुझको कया दिखलाते हो 
एहद ओ वफा के दायरे 
आया हूँ मैं सैंकडों 
गोलियों की खाक छान कर

हम वतन से आज भी 
उम्मीद-ए-वफा रखता हूँ 
दे रहा हूँ खुद को धोका 
खुद को नादाँ मानकर

ओस का उनको कभी 
एहसास भी होता नहीं 
शाम होते ही जो सो ~
जाते है चादर तानकर

बेवफाई के हर एक 
फन से हमे आगाह कर 
"नूर " अपनी बात कर 
या उनकी बात बयान कर

- नुरूलअमीन "नूर "

Thursday, September 10, 2015

लौट-लौट कर आएगा तुम्हारे पास..... स्मृति आदित्य








मन परिंदा है 
रूठता है 
उड़ता है 
उड़ता चला जाता है 
दूर..कहीं दूर 
फिर रूकता है 
ठहरता है, सोचता है, आकुल हो उठता है 
नहीं मानता 
और लौट आता है 
फिर... 
फिर उसी शाख पर 
जिस पर विश्वास के तिनकों से बुना 
हमारा घरौंदा है
मन परिंदा है 
लौट-लौट कर आएगा तुम्हारे पास 
तुम्हारे लिए...क्योंकि मन जिंदा है!

-स्मृति आदित्य