Tuesday, May 31, 2016

एक अकेली लड़की...संकलित रचना











एक लड़की थी रात को ऑफिस से वापस लौट रही थी
देर भी हो गई थी... कुछ डरी सी कुछ सहमी सी....
पहली बार ऐसा हुआ काम भी ज्यादा था 
और टाईम का पता ही नहीं चला वो सीधे ऑटो स्टैण्ड पहुँची

वहाँ एक लड़का खड़ा था
वो लड़की उसे देखकर डर गई
कि कहीं उल्टा सीधा ना हो जाए
तभी वो लड़का पास आया
और कहा - बहन तू.....जिम्मेदारी है मेरी
और जब तक तुझे कोई गाड़ी 
नहीं मिल जाती मैं तुम्हे छोड़कर 
कहीं नहीं जाऊँगा  फिक्र मत करिए
.
वहाँ से एक ऑटो वाला गुजर रहा था

लडकी को अकेली लड़के के साथ देखा
लड़की सकुचाई सी थी
तो तुरंत ऑटो रोक दिया 
और कहा - कहाँ जाना है बेटी ??
.
.....आइये मैं आपको छोड़ देता हूँ 
लड़की ऑटो में बैठ गई।
.
रास्ते में वो ऑटो वाला
बोला - मेरी बेटी भी तेरे ही जैसी है ।
.
इतनी रात को तुम्हें अकेला देखा
तो ऑटो रोक दिया।
.
आजकल जमाना खराब है ना 
.
और अकेली लड़की मौका नहीं
जिम्मेदारी होती है।
.
लड़की जहाँ रहती थी
वो एरिया आ चुका था।
.
वो ऑटो से उतर गई
और ऑटो वाला चला गया।
.
.
लेकिन अब भी लड़की को
दो - दो अंधेरी गलियों से होकर
गुजरना था
.
वहाँ से चलकर 
जाना था
.
तभी वहाँ से साइकल वाला
गुजर रहा था
.
शायद वो भी काम से
वापस घर की ओर
जा रहा था
.
लड़की को अकेली देखकर कहा - आओ! मैं तुम्हें घर तक छोड़ देता हूँ 
.
उसने
.
एक टोर्च लेकर उस लड़की के साथ
अंधेरी गली की और निकल पड़ा 
.
वो लड़की घर पहुँच चुकी थी।
.
आज किसी की बेटी,
बहन सही ✔  सलामत
घर पहुँच चुकी थी।
.
मेरे भारत को तलाश है 
ऐसे 3 तीन लोगों की -
.
1.) वो लडका जो
ऑटो स्टैण्ड पर खडा था।
.
2) वो ऑटो वाला।
.
और 
.
3) सायकिल वाला।
.
जिस दिन ये तीन लोग
मिल जाएंगे 
.
उस दिन मेरे भारत में 
रेप होना बंद हो जाएगा 
.
तभी आएंगे अच्छे दिन।।
और अच्छी राते

भारत की शान है 
माँ, बहन और औरत

-द्वारका दास द्वारा प्रेषित

Monday, May 23, 2016

मुट्ठी भर सपने.....मंजू मिश्रा


मुट्ठी भर सपने
दो चार अपने  
ख़ुशी के चार पल
तुम्हारी याद नहीं, तुम
बस.…
जिंदगी से
इतना ही तो माँगा था
क्या ये बहुत ज्यादा था !!!

-:-

दुःख में
रोने को एक कांधा
सुख में ... झूलने को दो बाहें
वारी जाने को
एक प्यारी सी मुस्कान
सपने समेटने को  
जीवन से भरी दो आँखें
बस.…
जिंदगी से
इतना ही तो माँगा था
क्या ये बहुत ज्यादा था !!!

-:-

ठिठकी सी धूप
जब चढ़े छत की मुंडेर का कोना
तो दौड़ जाएँ मेरी आँखें
गली के कोने तक
और समेट लाएं तुमको
पलकों में बंद करके
ऐसी एक शाम का  
एक रूमानी सा इंतजार  
बस.…
जिंदगी से
इतना ही तो माँगा था
क्या ये बहुत ज्यादा था !!!

-:-

अक्सर 
बड़े बड़े सपनो के पीछे 
भागने में 
हम इतने व्यस्त हो जाते हैं 
कि छोटी छोटी 
खुशियों का 
मोल ही भूल जाते हैं :-)



Thursday, May 12, 2016

हर बूंद नगीना हो................वज़ीर आग़ा

सावन का महीना हो
हर बूंद नगीना हो

क़ूफ़ा हो ज़बां उसकी
दिल मेरा मदीना हो

आवाज़ समंदर हो
और लफ़्ज़ सफ़ीना हो

मौजों के थपेड़े हों
पत्थर मिरा सीना हो

ख़्वाबों में फ़क़त आना
क्यूं उसका करीना हो

आते हो नज़र सब को
कहते हो, दफ़ीना हो

- वज़ीर आग़ा 
क़ूफ़ा--ऐसा शहर जहाँ झूठे लोग रहते हैं ....
सफ़ीना - समंदर का काफिला जैसे पानी का जहाज
मिरा - मेरा, करीना - तरीका
दफ़ीना - ज़मीन के अन्दर गढ़ा हुआ खजाना

Tuesday, May 10, 2016

दिल से उसके जाने कैसा बैर निकला.............. महावीर उत्तरांचली


दिल से उसके जाने कैसा बैर निकला 
जिससे अपनापन मिला वो ग़ैर निकला 

था करम उस पर ख़ुदा का इसलिए ही 
डूबता वो शख़्स कैसा तैर निकला 

मौज-मस्ती में आख़िर खो गया क्यों 
जो बशर करने चमन की सैर निकला 

सभ्यता किस दौर में पहुँची है आख़िर 
बंद बोरी से कटा इक पैर निकला 

वो वफ़ादारी में निकला यूँ अब्बल 
आँसुओं में धुलके सारा बैर निकला 

-महावीर उत्तरांचली

m.uttranchali@gmail.com

Saturday, May 7, 2016

मदर्स डे....यशोदा










मदर्स डे....
लो आ गया फिर से
मदर्स डे
यद्यपि है तो ये
पाश्चात्य परम्परा....
उन्होंने ही...
किसी को महत्वपूर्ण जताने
साल का एक दिन..
उसके नाम कर दिया
परन्तु......
इसके विपरीत
अपने भारत में....
वर्ष का पूरा तीन सौ पैंसठ दिन
माँ के नाम ही तो है
सीमित नहीं यहाँ तक भी
जो भी देता है जीवन
और ज़रूरी है जीवन के लिए
उसे भी माँ की कोटि में
गिना जाता है
माता तो धरती भी है..
जो अपना सीना चीर कर 
अन्न देती है
माता भारत भी है...
जिसकी जय-जयकार 
हम नित्य करते हैं..
गाय तो माता कहलाती ही है
पतित पावनी गंगा-जमुना
भी माताएँ ही हैं....
........................पर 
ये तो भारत है.....
सम्मान के साथ-साथ..
दुर्व्यवहार भी होता रहता है
माता का सदा-सर्वदा

मन की उपज
-यशोदा

Thursday, May 5, 2016

तेरी रहमत की बारिश....आलोक श्रीवास्तव


तुम्हारे पास आता हूँ तो सांसें भींग जाती है
मुहब्बत इतनी मिलती है कि आँखें भींग जाती है

तबस्सुम इत्र जैसा है हंसी बरसात जैसी
वे जब बात करती है तो बातें भींग जाती है

तुम्हारी याद से दिल में उजाला होने लगता है
तुम्हें जब मैं गुनगुनाता हूँ तो सांसें भींग जाती है

ज़मीं की गोद भरती है तो क़ुदरत भी चहकती है
नए पत्तों की आमद से ही शाख़ें भींग जाती है

तेरे अहसास की ख़शबू हमेशा ताजा रहती है
तेरी रहमत की बारिश से मुरादें भींग जाती है

-आलोक श्रीवास्तव
मधुरिमा से.........

Tuesday, May 3, 2016

"वो मेरे पहलू में जलवागर है....... !!!".....सिराज फ़ैसल खान







वो मुझसे कहती थी
मेरे शायर 
ग़ज़ल सुनाओ 
जो अनसुनी हो 
जो अनकही हो 
कि जिसके एहसास
अनछुए हों,
हों शेर ऐसे 
कि पहले मिसरे को
सुन के 
मन में 
खिले तजस्सुस 
का फूल ऐसा 
मिसाल जिसकी 
अदब में सारे 
कहीं भी ना हो....... 
में उससे कहता था 
मेरी जानां
ग़ज़ल तो कोई ये कह चुका है,
ये मोजज़ा तो 
खुदा ने मेरे 
दुआ से 
पहले ही कर दिया,
तमाम आलम की 
सबसे प्यारी 
जो अनकही सी 
जो अनसुनी सी 
जो अनछुई सी 
हसीं ग़ज़ल है--
"वो मेरे पहलू में 
जलवागर है....... !!!"

-सिराज फ़ैसल खान
प्रस्तुत कर्ताः श्री अशोक खाचर
http://ashokkhachar56.blogspot.in/2016/05/blog-post.html

Sunday, May 1, 2016

बारिश के पहले................. ब्रजेश कानूनगो










आने से पहले
कुछ और भी चला आता है
सूचना की तरह
जैसे उजाले से पहले
गुलाबी हो जाता है आकाश
  
मानसून के पहले
मेघ आते हैं मुआयना करने
टॉर्च जलाते हुए
बूंदों के पहले कोई अंधड़
अस्त-व्यस्त करता है जीवन

सौंधी महक में लिपटी   
याद आती है तुम्हारी
बारिश से ठीक पहले.  
-ब्रजेश कानूनगो