Tuesday, February 14, 2017

तुम भी न बस कमाल हो....डॉ. जेन्नी शबनम
















धत्त! 
तुम भी न 
बस कमाल हो! 
न सोचते 
न विचारते 
सीधे-सीधे कह देते 
जो भी मन में आए 
चाहे प्रेम 
या ग़ुस्सा 
और नाराज़ भी तो बिना बात ही होते हो 
जबकि जानते हो 
मनाना भी तुम्हें ही पड़ेगा 
और ये भी कि 
हमारी ज़िन्दगी का दायरा 
बस तुम तक 
और तुम्हारा 
बस मुझ तक 
फिर भी अटपटा लगता है 
जब सबके सामने 
तुम कुछ भी कह देते हो 
तुम भी न 
बस कमाल हो!
-डॉ. जेन्नी शबनम
jenny.shabnam@gmail.com

6 comments:

  1. कविता में आलोचना से ज़्यादा प्यार छुपा है, अपनापन छुपा हुआ है. कमाल की कविता है. इसे पढ़ने के बाद सोचना पड़ रहा है कि दाम्पत्य-जीवन में हुई नोंक-झोंक में हम ऐसे ही रिश्तों की मिठास क्यूँ नहीं खोज लेते. बहुत खूब डॉक्टर जेन्नी शबनम !

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  2. प्रेम की निश्छलता और समर्पण को उकेरती मनभावन रचना.

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  3. सुन्दर कविता

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